ईडी विरोधियों को मिला 2200 करोड़ का जवाब
कांग्रेस काल में ईडी खामोश क्यों थी? भ्रष्टों के पक्ष में ईडी के हाथ-पैर बांधे गये थे/भ्रष्टचार से आम आदमी की संभावनाएं मरती हैं, ईडी का डर बना रहे/ईडी के खिलाफ अफवाहोें पर रोेक लगे।
आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
ईडी विरोधी बेनकाब हो गये, उनके झूठ पर सच का बुलडोजर चल गया, अब वे खामोशी धारण कर लिये हैं, कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईडी विरोधियों को बेनकाब किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईडी विरोधियों को ऐसा जवाब दिया है जिससे वे न केवल बेनकाब, बेपर्दा हो गये बल्कि उनकी भ्रष्टचार की कहानियां भी जनसुलभ हो गयी हैं और वे सीधे तौर पर जनता की नजरों में भ्रष्टचार के समर्थक तथा देश के लुटेरे साबित हो गये हैं। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि नरेन्द्र मोदी का जवाब क्या है? नरेन्द्र मोदी का जवाब है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ईडी ने भ्रष्टचारियों की भ्रष्ट कमाई 2200 करोड रूपये जब्त किये हैं। मोदी ने खासकर कांग्रेस को भी लपेटे में लेकर कहा है कि कांग्रेसी काल में सिर्फ 35 लाख रूपये ही ईडी ने जब्त की थी। सिर्फ इतना ही भर नहीं बल्कि उन्होंने राजनीतिक जवाब भी दिया है और कहा है कि वे अपने विरोधियों को बदले की भावना से ईडी की कार्रवाई नहीं करा रहे हैं, राजनीतिज्ञ तो गिनती मात्र के हैं पर असली निशाने पर तो भ्रष्ट अफसर, नक्सली, अपराधी और तस्कर हैं। राजनीतिज्ञ तो सिर्फ तीन प्रतिशत ही है, शेष 97 प्रतिशत तो भ्रष्ट अधिकारी, कारपोरेट घराने, अपराधी और तस्कर ईडी के निशाने पर हैं, आतंकवादी संगठन और उसके संरक्षकों की भी ईडी ने गर्दन नापी है। जब मोदी ने ये आंकडे प्रस्तुत कर दिये हैं तब ईडी विरोधियों से जवाब की अपेक्षा होती है। कांग्रेसी राज में ईडी खामोश क्यो थी, सिर्फ 35 लाख की संपत्ति ही क्यों जब्त की थी, भ्रष्टचारियों को बचाने के लिए ईडी के हाथ-पैर बांधे गये थे?
लेकिन ईडी विरोधी जवाब देने के लायक ही नहीं हैं? ईडी विरोधी मोदी की इस अवधारणा के खिलाफ जवाब क्यों नहीं प्रस्तुत कर सकते हैं? इसलिए कि मोदी के कथन, मोदी के आंकडे सच हैं। सच के सामने झूठ कहां टिकता है? आज ईडी की भ्रष्टचार विरोधी कार्रवाइयों से न केवल राजनीतिज्ञ बल्कि अन्य बडी-बडी हस्तियां भी जेलों की चक्की पिस रही हैं और हर जगह यह डर फैला हुआ है कि कहीं कोई शिकायत हो गयी तो फिर ईडी गर्दन नाप देगी। भ्रष्टचार के खिलाफ लडाई के लिए ईडी का डर जरूरी है।
ईडी के खिलाफ कितनी बडी साजिश चल रही है, ईडी को बदनाम करने के लिए कैसी-कैसी अफवाहें उड़ती हैं, देश से लेकर विदेशों तक ईडी के खिलाफ किस प्रकार की प्रक्रियाएं चलती हैं, यह सब भी स्पष्ट है। ईडी की कारवाई के खिलाफ अमेरिका ने झूठ आधारित आलोचनाएं की, जर्मनी ने आलोचनाएं की, इतना ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट संघ भी कूद पडा। कहने का अर्थ यह है कि देश के अंदर ईडी के खिलाफ जो अफवाहें शुरू की गयी थी उन अफवाहों के साथ अमेरिका, जर्मनी और सयंुक्त राष्ट संघ जुड गये। भारत को लोकतंत्र कायम रखने के लिए और नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले चलाने पर नसीहतें पिलायी गयी। यह देखने की कोशिश नहीं हुई है कि भारत का लोकतंत्र गतिमान है, लोकतंत्र पर कोई आंच नहीं है, लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत ही प्रशंसनीय है, न्यायपालिका तो कार्यपालिका के वर्चस्व से बाहर है। सबसे बडी बात यह है कि ईडी की कार्रवाई कोई अराजक कार्रवाई नहीं है, अनियंत्रित कार्रवाई नहीं है, कोई गैर कानूनी कार्रवाई नहीं है, कोई संवैधानिक कार्रवाई नहीं है। ईडी की कार्रवाई का न्यायिक परीक्षण होता है, न्यापालिका ईडी की सभी कार्रवाईयो का आकलन करती है, सबूत देखती है, भ्रष्टचार की परिस्थितियां देखती हैं। इसके उपरांत ही भ्रष्टचारियो के आरोपियों को रिमांड देती है या फिर जेल भेजती है। ईडी की प्रशंसा इस बात की भी होनी चाहिए कि जटिल न्यायिक व्यवस्था के बावजूद उसने भ्रष्टचारियों को गर्दन नापने में कोई कसर नहीं छोडती है, भ्रष्टचार के सबूत बैज्ञानिक ढंग से जुटाती है और भ्रष्टचार की कड़ियों को जोडने में सावधानी भी बरतती है।
ईडी को कमजोर करने, ईडी को विषहीन करने की राजनीति और साजिशें भी चलती रहती हैं। ईडी की कार्रवाइयों को मौलिक अधिकारों का हनन बता कर लोकतंत्र की रक्षा की मांग होती है। क्या यह सही नहीं है कि ईडी के अधिकार को लेकर भ्रष्टचार विरोधियों की एकजुटता और कारस्तानी चरम पर रहती है। अरविन्द केजरीवाल को जेल भेजा गया तब ईडी के अधिकारों पर प्रश्न उठाये गये और ईडी के अधिकार को चुनौती दी गयी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जब भ्रष्टचार के आरोप में जेल भेजा गया तब भी ईडी के अधिकार को लेकर प्रश्न खडे किये गये और न्यायपालिका में चुनौती दी गयी। बार-बार ईडी न्यायपालिका में अपने अधिकार को लेकर सक्रिय रही है। सुप्रीम कोर्ट को भी ईडी के अधिकारों का परीक्षण करने की जरूरत पडी थी। सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षण के बाद साफ तौर पर ईडी की कार्रवाइयों को कानून और संविधान के अनुरूप पाया था। सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने न्यायिक परीक्षण के बाद फैसला दिया था कि पीएमएलए की धारा 5,15,17,45,50 को वैण करार दिया था, इन धाराओं में संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी, उसकी संपत्ति को सर्च करने, छापेमारी करने और उसकी संपत्ति को अटैच करने का अधिकार है। दिल्ली होईकोर्ट ने भी ऐसे प्रश्नों, ऐसी अफवाहों और ऐसी साजिशों को बेनकाब कर दिया। अरविन्द केजरीवाल की चुनौती पर दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कर दिया किया कि ईडी के पास अधिकार है, वह भ्रष्टचार के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है, मुख्यमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को भ्रष्टचार करने का अधिकार नहीं है, वह अपनी गिरफ्तारी से बच नहीं सकता है, मुख्यमंत्री भी आम नागरिक की तरह ही है। अरविन्द केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से पूर्व भें बार- बार ऐसे प्रश्न सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों में उठाये गये हैं और ईडी की कार्रवाई को बाधित करने की कोशिश हुई है।
चोरी और सीनाजोरी। भ्रष्ट नेता बहुत ही चालाक और घूर्त होते हैं। वे अपना बचाव करने के लिए हथकंडे अपनाना जानते हैं, क्योंकि उनके पास धन बल होता है, वे मीडिया को प्रभावित करते हैं, अपने समर्थक बल को लेकर अंहकार में होते हैं, महंगे वकीलों के माध्यम से न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। सबसे बडी बात यह है कि समर्थक बल पर राजनीतिक बचाव की कोशिश चरम पर होती है। लालू के पास समर्थक बल है, लालू पशुओं का चारा खा गया, सीबीआई जांच हुई, सीबीआई की जांच का कोर्ट में परीक्षण हुआ, फिर लालू दोषी ठहराये गये, अब फिर रेलवे कांड में ईडी के निशाने पर लालू और उसका परिवार है। पर लालू का परिवार ईडी पर राजनीतिक आरोप लगा रहा है, कह रहा है कि नरेन्द्र मोदी बदले की भावना से उन लोगों पर कार्रवाई करा रहा है। अरविन्द केजरीवाल राजनीति की गंदगी दूर करने के लिए आये थे, कहते थे कि वे राजनीति को बदल देंगे, भ्रष्टचार समाप्त कर देंगे, भ्रष्टचारियों की गर्दन नाप देंगे, शिला दीक्षित से लेकर सोनिया गांधी के भ्रष्टचार पर प्रश्न खडा करने वाला केजरीवाल सत्ता में आने के साथ ही खामोशी धारण कर ली। नैतिकता और शुचिता की बात करने वाला केजरीवाल शराब बेचने लगे, दिल्ली के नागरिकों को शराब में डूबाने लगे, गली-गली में शराब की दुकानें खोलवा दी, इतना ही नहीं बल्कि शराब घोटाला भी कर दिया। अब केजरीवाल का आरोप है कि नरेन्द्र मोदी लोकतंत्र को समाप्त करना चाहता है, इसलिए बिना सबूत का उन्हें जेल में डाला है। लेकिन न्यायिक परीक्षण में अरविन्द केजरीवाल को राहत नहीं मिलने का आधार यह कहता है कि ईडी के पास पक्के सबूत हैं। नेशनल हेराल्ड मामले में खूद राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी फसे हुए हैं। अभी-अभी एक कोर्ट ने ईडी को नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया है। शराब घोटाले का नया अपडेट यह है कि ईडी के बाद सीबीआई भी प्रवेश कर गयी है। सीबीआई ने तेलागंना के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की बेटी कविता की पोल खोल कर रख दी है, दिल्ली के एक आलीशान होटल में शराब के घोटालेबाजों से कविता की बैठक हुई थी।
ईडी के खिलाफ भ्रष्टचारियों की ऐसी गिरोहबंदी चिंताजनक है। भ्रष्टचार के कारण आम आदमी की संभावनाएं मरती हैं, विध्वंस होती है, संहार को प्राप्त करती हैं। अब बडे भ्रष्टचारी अपनी गर्दन नपने के डर से परेशान हैं। ईडी जैसी सभी जांच एजेंसियों का डर बना रहना चाहिए। प्रशंसा की बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार सिर्फ ईडी ही नहीं बल्कि सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को संरक्षण देती हैं, उन्हें रोकती नहीं है, उन्हें विषहीन नहीं बनाती हैं। जांच एजेसियों की भ्रष्टचार विरोधी कार्रवाइयों से आतंकवाद और तस्करी पर भी रोक लगा है, देश की सुरक्षा भी चाकचैबंद हुई है। जब धन पर ही बुलडोजर चल जायेगा तो फिर देश द्रोही आतंकवादी कैसे अपनी सक्रियता सुनिश्चित कर सकते हैं। जनता सब जानती है, यही कारण है कि भ्रष्टचारियों की गोलबंदी के बावजूद जनता ईडी की कार्रवाइयों पर खुशी जाहिर करती है।