प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं अडानी-अंबानी के खिलाफ बोलेंगे, इन पर अविश्वास जतायेंगे, राहुल गांधी से कथित दोस्ती करने पर अडानी-अंबानी को कोसेंगे, लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने का अप्रत्यक्ष आरोप अडानी-अंबानी पर लगायेंगे, इसकी उम्मीद नहीं थी। लेकिन राजनीति ऐसी ही चीज है, कब क्या घटित हो जायेगा, कब कौन सा प्रश्न उफान पर आ जायेगा, कब कौन सा उफान वाला प्रश्न अचानक गायब हो जायेगा, यह नहीं कहा जा सकता है, शाम में किसी के साथ और सुबह किसी के साथ खड़ा हो जाना भी भारतीय राजनीति की सच्चाई है। उद्योगपति तो अवसरवादी होते ही हैं, उन्हें तो सिर्फ सरकार से दोस्ती भाती है, इन्हें तो विपक्ष कीडे-मकौडे जैसे लगते हैं। मोदी का बयान जितना सनसनी खेज है उससे कहीं ज्यादा राहुल गांधी की अडानी और अंबानी के खिलाफ खामोशी है। क्या चुनाव प्रचार के दौरान धनराशि की कमजोरी ने राहुल गांधी और कांग्रेस को अंबनाी-अडानी से पर्दे के पीछे से दोस्ती करने के लिए प्रेरित किया है? कांग्रेस आर्थिक तंगी से जूझती रही है, कांग्रेस के बैंक एकाउंट इनकम टैक्स की परिधि में है। चुनाव प्रचार के दौरान खर्च होने वाले अरबों-खरबों रूपये भी तो इन्हें नामी और बदनामी उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों से आते हें।
इसलिए नरेन्द्र मोदी के अडानी-अंबानी विचार भी स्वभाविक ही है। सच्चाई तो है, बिना सच्चाई का नरेन्द्र मोदी इतनी सनसनी खेज आरोप तो लगा ही नहीं सकते हैं? अब यहां यह प्रश्न उठता है कि नरेन्द्र मोदी के चुनाव के समर क्षेत्र में अडानी और अंबानी पर विचार क्या है? जिसके लपेटे में खूद राहुल गांधी आ गये हैं? नरेन्द्र मोदी ने एक चुनाव प्रचार के दौरान सीधे तौर पर कहा कि अडानी और अंबानी से राहुल गांधी की सिर्फ दोस्ती ही नहीं हैं, बल्कि पर्दे के पीछे समझौते हुए हैं, बडे डील हुए हैं, डील क्या है, पैसे कितने मिले हैं? मोदी का सीधा कहना है कि चुनाव के दौरान अडानी और अंबानी से राहुल गांधी को पैसे मिले हैं। पैसे की कसौटी पर राहुल गांधी ही नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस चुनावों के दौरान अडानी-अंबानी पर खामोश हैं। चुनावी इंतिहास पर हम ध्यान केन्द्रित करेंगे तो पायेंगे कि पिछले कई चुनावों में अडानी और अंबानी एक मजबूत चुनावी मुद्दा बने रहे हैं, खासकर कांग्रेस पूरी तरह से इनके पीछे पडी रहती थी और कहती थी कि नरेन्द्र मोदी सिर्फ दिखावे के लिए प्रधानमंत्री हैं, ये तो अडानी और अंबानी के गुलाम हैं, अडानी-अंबानी की तिजोरी भरते हैं, गरीब जनता को लूटने की पूरी छूट अडानी और अंबानी को नरेन्द्र मोदी की सरकार में है।
राहुल गांधी की छबि अडानी-अंबानी विरोधी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों सहित अन्य प्रादेशिक चुनावों में इन्होंने अडानी-अंबानी विरोध का मुद्दा बनाया था। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी हमेशा अडानी-अंबानी के खिलाफ आग उगलते थे। ऐसे एक सत्य यह है कि अडानी-अंबानी जैसे जितने भी नामी और बदनामी उद्योगपति हैं, ये सबके सब कांग्रेस की ही पैदाइश है। अडानी और अंबानी का उदभव और विकास कोई नरेन्द्र मोदी के दस साल के शासनकाल में नहीं हुआ था। अडानी और अंबानी का उदभव और विकास कांग्रेस के केन्द्रीय शासन के दौरान हुआ। नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक की दोस्ती अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों से रही है। इंदिरा गांधी और अंबानी घराने के संस्थापक धीरू अंबानी की दोस्ती के किस्से राजनीतिक परिधि धूमते-फिरते रहते हैं। इंदिरा गांधी और धीरू भाई अंबानी साथ-साथ डिनर करने वाले एक फोटो भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय रहा है। ध्यान यह दिया जाना चाहिए कि धीरू भाई अंबानी का विकास इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान ही हुआ था। पहले तो देश में सिर्फ टाटा-विडला का ही नाम जाना जाता था। लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान धीरू भाई अंबानी अपनी हैसियत इतनी बडी बनायी कि उनकी गिनती टाटा-बिडला से भी उपर होने लगी। टाटा-बिडला आज गौण हो गये, आज तो अंबानी और अडानी का ही जमाना है।
राहुल गांधी, कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी विरोधी विपक्ष का विरोधाभाष बहुत ही जहरीला है, विरोधाभाष दखिये। ये सभी अडानी-अंबानी जरूर चिल्लाते हैं, और आरोप लगाते हैं कि ये देश को लूट रहे हैं। पर तथ्य यह कहते हैं कि सत्ता में आने के साथ ही साथ ये अडानी-अंबानी के समर्थक बन जाते हैं, दोस्त बन जाते हैं और अप्रत्यक्ष तौर इनके समर्थन में खडे हो जाते हैं। इसके उदाहरण कोई एक नहीं बल्कि अनेक हैं। राजस्थान में कुछ समय पहले तक कांग्रेस की सरकार थी, राजस्थान में कांग्रेस सरकार द्वारा अडानी को काम मिला था। महाराष्ट में कांग्रेस समर्थन वाली उद्धव ठाकरे की सरकार थी, वहां भी अडानी को काम मिला। अभी-अभी तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनी है। तेलगाना की कांग्रेस सरकार ने अडानी को ठेका दिया है। अडानी और ममता बनर्जी के साथ एक कथित मुलाकात भी काफी चर्चित रही है। राहुल गांधी के बहनोई राॅबर्ट वाढरा का एक फोटो अडानी के साथ चलने का वायरल हुआ था। उस फोटो पर रार्बट बढेरा की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी, इसलिए यह माना जा सकता है कि वायरल फोटो सही था, अडानी और रार्बट बढेरा पर्दे के पीछे दोस्त हैं और उनके बीच में व्यापारिक सहमति-साझेदारी की नीतिगत राजनीतिक-व्यापारिक सक्रियता जारी रहती है।
अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपति किसी के नहीं होते? ये सिर्फ अवसर वादी होते हैं, मिनटों-मिनट में आंख फेर लेते हैं, दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर कर देते हैं। ये सभी सत्ता के दोस्त होते हैं, सत्ता से इनकी एयारी होती है, विपक्ष तो इन्हें कीडे-मकौडे की तरह लगते हैं। ऐसे डद्योगपतियों को जार्ज फर्नाडीस ने बेनकाब किया था। घटना आपातकाल और उसके बाद की राजनीतिक घटनाओं से जुडा हुआ है। एक बार उद्योगपतियों का संगठन फिकी ने जार्ज फर्नाडीस को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। उस दौरान जार्ज फर्नाडीस देश के उद्योग मंत्री थे और जार्ज फर्नाडीस उघोगपतियों को वैश्या से भी नीचे समझते थे।फिकी से जुडे डद्योगपतियों ने कार्यक्रम में जार्ज फर्नाडीस का स्वागत करते हुए कहा कि आपातकाल बहुत बूरी चीज थी, आपातकाल ने देश को गर्त में ढकेल दिया,मानवाधिकार का हनन हुआ, हिंसा हुई, आपने साहस दिखाया, बलिदान दिया, इसी का प्रतिफल है कि आज हम खूली हवा में सांस ले रहे हैं और आपातकाल से हमें मुक्ति मिली है, देश अब फिर से विकास के रास्ते पर आगे बढने लगा है, इत्यादि-इत्यादि। जब जार्ज फर्नाडीस संबोधन शुरू किया तो उन्होनंे फिकी और उद्योगपतियों को पूरी तरह नंगा कर दिया था। जार्ज फर्नाडीस ने अपने पाकेट से एक कागज का टूकडा निकाला और पढना शुरू कर दिया कि फिकी ने आपातकाल के दौरान कैसे इंदिरा गांधी को महान बताया था और आपातकाल को जरूरी बताया था, मानवाधिकार हनन को जरूरी बताया था। फिकी ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का गुनगान किया था और आपातकाल को समर्थन दिया था। जार्ज फर्नाडीस का उक्त भाषण बहुत ही चर्चित हुआ था। आज भी जब उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों के समर्पण और ईमानदारी पर बात निकलती है तो फिर जार्ज फर्नाडीस का वह विचार और सोच सामने आ ही जाता है। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी सरकार के दौरान मुकेश अंबानी ने अपने भाई अनिल अंबानी से अलग होकर और मुलायम सिंह यादव से संबंध तोडकर अपना साम्राज्य बचाया था। उस दौरान अंबानी परिवार की अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथ दोस्ती से सोनिया गांधी नाराज थी।
अडानी-अबानी जैसे लोग किसे के अपने नहीं होते हैं। फिर नरेन्द्र मोदी के अपने कैसे हो सकते हैं? मीडिया ने एक शोर खड़ा किया है कि मोदी सरकार में लौट नहीं रहे हैं। इस कारण अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपति डरे हुए हैं। कल कांग्रेस सरकार में आ जायेगी, मोदी विरोधी पार्टियों की सरकार बन जायेगी तो फिर उनका क्या होगा? यह डर स्वाभाविक है। कांग्रेस को भी लोकसभा चुनावों के दौरान पैसे की जरूरत होगी। कांग्रेस को ही क्यों बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियों को चुनावों के दौरान पैसे की जरूरत होती ही है। राजनीतिक पार्टियां भी अडानी-अंबानी जैसे नामी-बदनामी उद्योगपतियों के चंदे पर ही चलती हैं। इसलिए लोकसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी और अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों से आर्थिक दोस्ती भी हो सकती है। ऐसे ही राहुल गांधी खामोश नहीं हो सकते हैं?