पश्चिमी मीडिया भारत के जीवंत लोकतंत्र को देखता क्यो नहीं?

ब्रिटेन के मशहूर अंग्रेजी अखबार ‘ डेली एक्सप्रेस‘ के असिस्टेंट एडिटर सैम स्टीवेन्सन ने पश्चिमी मीडिया को बेनबाब करने का काम किया है, उन्होंने ऐसा सच स्वीकार कर लिया है जो किसी अन्य पश्चिमी देशों के पत्रकारों ने अब तक स्वीकार नहीं की थी। सैम स्टीवेन्सन ने मजबूती के साथ स्वीकार किया कि पश्चिमी मीडिया भारत और भारतीय संस्कृति से पूर्वाग्रह रखता है, अफवाह फैलाता है और भारत की छबि खराब करने की कोशिश करता है। झूठ और सुनी सुनायी बातों को अपनी भारत सोच को मजबूत करता है। भारत का सनातन वैभव, राममंदिर की शक्ति, भारत की बढती अर्थव्यवस्था, भारत की सामरिक शक्ति सहित नरेन्द्र मोदी के अदभुत शासन को पश्चिमी मीडिया स्वीकार ही नहीं करता है। हमनें भारत चुनाव के दौरान जींवत लोकतंत्र देखा है, नरेन्द्र मोदी की सभा में बुर्काधारी मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी देखी है, हमनें बुर्के में मुस्लिम महिलाओं को वोट देते देखा है। उन्होंने पश्चिमी मीडिया को नसीहत देते हुए कहा कि विश्व व्यवस्था में भारत की शक्ति और लोकतंत्र को नकराने का अर्थ अपनी खुद की विश्वसनीयता को कब्र में ढकेलने जैसा है।

आज नहीं बल्कि उपनिवेशिक काल से ही पश्चिम मीडिया पर भारत विरोधी सोच, अफवाह और अपमानजनक ग्रंथियां हावी रही हैं, इससे कभी मुक्त होने की कोशिश ही नहीं करता है। उपनिवेशिक काल में पश्चिमी मीडिया की सोच और अपमानजनक ग्रंथी थी कि भारत के लोग अनपढ, जाहिल और साप-सपेरे वाले हैं, ये शासन चलाने या फिर वैज्ञानिक और प्रगतिशील सोच से दूर रहने वाले हैं। उनकी ऐसी सोच और धारणा खूद एक अधकचरी और उपनिवेशिक सोच से निकलती थी। कोई एक नहीं बल्कि अनेक भारतीयों ने अपनी प्रतिभा और तेज से पश्चिमी मीडिया की इस सोच को पराजित किया था। स्वामी विवेकानंद की अमेरिका के शिकागो में दिया गया संबोधन से खुद उपनिवेशिक दुनिया और अमेरिका चमत्कृत हुआ था, जिसकी गूंज अमेरिका और यूरोप के घर-घर में गूंजी थी। विज्ञान में जगदीशचन्द्र बसु, साहित्य के क्षेत्र में रवीन्द्रनाथ टैगौर ने अपनी छाप छोडी थी। भारतीय संस्कृति का मंत्र ओम शांति-शांति मानवता के लिए रक्षक और विकास का पर्याय था। आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी की अहिंसा दुनिया के लिए एक धरोहर और प्रेरणा बनी थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज ने दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन और उसके समूह के यूरोपीय देशों को चुनौती दी थी और स्थापित किया था कि हम अनपढ और जाहिल नहीं है, हमें आजादी चाहिए और हम खुद अपनी सत्ता चला सकते हैं, अपना भाग्यविधाता खुद बन सकते हैं। पश्चिमी मीडिया खूब चमत्कृत था, ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चर्चिल के उस बयान से जो उन्होंने ब्रिटेन की संसद में दिया था कि भारत के लोग भारत नहीं चला पायेंगे, एक विकसित और बलवान भारत का इनका सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकता है, फिर ये एक विफल देश के रूप प्रस्तुत होकर हमारे चरणों में आयेंगे और हमें अपना भाग्यविधाता फिर से बनायेंगे।
लेकिन पश्चिमी मीडिया की भारत विरोधी सोच तो आजादी मिलने के साथ ही साथ दफन हो गया थी, पराजित हो गयी थी, अस्तित्वहीन हो गयी थी,बेनकाब हो गयी थी। आजादी कोई भीख नहीं थी, ब्रिटेन या पश्चिमी मीडिया की रहम और दया आधारित आजादी हमारी नहीं थी। हजारों नहीं बल्कि लाखों भारतीयों के बलिदान का आधार थी हमारी आजादी। डाॅ हेडगावर, वीर सावरकर, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद जैसे वीरों और बलिदानियों ने ब्रिटेन को आजादी देने के लिए बाध्य किया था।
आजादी हमें मिली, हमने अपनी आजादी को अपना कर्म और धर्म बना डाला, अपनी आन, बान और शान बना दिया, हमनें हिंसा या तानाशाही नहीं अपनायी, हमारा संविधान और शासन के अन्य तंत्र कोई पूराग्रही नहीं, कोई भेदभाव नहीं, कोई असमानता नहीं। हमनें बहुसंख्यक प्रिय की जगह अल्पसंख्यक प्रिय संविधान की रचना की, हमनें अल्पसंख्यक सम्मान वाला संविधान और कानून विकसित किये। हमनें जीवंत और समृद्ध लोकतंत्र स्थापित किया। हमारा लोकतंत्र जनभावना के आदर करता है। हमारा लोकतंत्र दुनिया को सबक और प्रेरणा देता है। हमारी लोकतंात्रिक व्यवस्था दुनिया इसीलिए प्रेरक और अनुकरणीय है। अमेरिका और यूरोप में भी संविधान की परमपराएं जहां पर संस्कृति निष्ठ और बहुसंख्यक आबादी की भावनाएं तुष्ट करने वाली हैं वहीं पर हमारा संविधान और लोकतंत्र पूरी तरह से समाजवाद यानी बराबरी के सिद्धांत पर निर्भर हैं। हमनें ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों की तरह राजा-रानी स्थापित नहीं किये, हमनें राष्ट प्रमुख यानी राष्टपति आम आदमी को बनाया, स्थापित किया।
इधर तथाकथित धार्मिक असहिष्णुता को लेकर पश्चिमी मीडिया का अभियान भारत विरोधी है। पश्चिमी मीडिया का कहना है कि नरेन्द्र मोदी का शासन में धार्मिक सहिष्णुता नहीं है, मुसलमानों और ईसाइयों के मजहबी मामलों में दखल दिया जा रहा है, उनके मजहबी अधिकार को संकुचित किया जा रहा है, प्रहार किया जा रहा है। जबकि ऐसी बातें सरासर झूठ और अफवाह युक्त है। ऐसा करने के पीछे उनकी भारत विरोधी सोच ही नहीं बल्कि उनकी मुसलमान और ईसाई समर्थक मजहबी नजरिया है। यह कहने में कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी कि उनके उपर मुस्लिम और ईसाई मानसिकताएं और अवधारणाएं हावी रहती हैं। इसके साथ ही साथ उन पर भारत की पुरातन और प्रेरक संस्कृति के विरोध की ग्रंथी भी चढी होती है। मनगढंत धार्मिक सहिष्णुता का प्रश्न कौन उठाता है? उनका एजेंडा क्या होता है? तथाकथित धार्मिक सहिष्णुता का प्रश्न वहीं लोग उठाते हैं जो ईसाई और मुस्लिम देशों और संगठनों से पैसे लेते हैं, फेलोशीप लेते हैं, टूर उपभोग के लाभार्थी होते हैं। उनका एजेंडा देश के पुरातन संस्कृति सनातन को लांक्षित करना और अपमानित करना होता है।
पश्चिम मीडिया यह देखने और समझने की कोशिश करता ही नहीं है कि यहां पर तो पीडित और धार्मिक असहिष्णुता का सबसे ज्यादा शिकार तो हिन्दू ही हैं। क्या किसी प्रदेश से ईसाइयों और मुसलमानों का समूल नाश किया गया? उन्हें भगाया गया? उनके मजहबी अधिकारों से वंचित किया गया? इसके विपरीत तथ्य और सच्चाई देख लीजिये। कश्मीर से हिन्दुओं को लक्ष्य आधारित हिंसा का शिकार बनाया गया और उनका लगभग समूल नाश किया गया, कश्मीर से हिन्दुओं को खदेडा गया, अपने ही देश में हिन्दू शरणार्थी बन गये पर पश्चिमी मीडिया ने मुस्लिम और इस्लाम के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया, उन्हें कोसा तक नहीं। सबसे बडी बात यह है कि मुसलमानों ने देश में सैकडों जगहों पर हिंसा फैलायी, आतंकवाद फैलाया और हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम किया। गुजरात के गोधरा में रेल गांडी जलाकर 80 से अधिक कारसेवकों को जला कर मार डाला। गोधरा कांड जैसी घटना शायद ही दुनिया में कहीं और घटी हो। पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं को खदेडने का अभियान जारी है, हिन्दू पर्व त्यौहारों पर मुसलमान पत्थर बरसाते हैं, देश की राजधानी दिल्ली में हिन्दू पर्व त्यौहारों पर अनेक हमले हुए हैं, दिल्ली के कई मुहल्लों में हिन्दुओं ने अपने घर विकाउ होने के बोर्ड लगा रखें हैं, ऐसा हिन्दुओं ने मुसलमानों के डर और उनकी हिंसा से बचने के लिए लिखे हैं। चर्च किस प्रकार से धर्म परिवर्तन के खेल में लगा हुआ है,यह भी स्पष्ट है। मदर टरेसा को भगवान मानने वाला पश्चिमी मीडिया क्या यह जवाब दे सकता है कि किसी व्यक्ति के स्पर्श मात्र से कैंसर का रोग दूर हो जायेगा? मदर टरेसा को संत इसलिए माना गया था कि उसके स्पर्श मात्र से कैंसर रोगी ठीक हो जाते थे। वेटिकन और पश्चिमी मीडिया की यह मान्यता सरासर झूठ और मनगढंत थी। मदर टरेसा सेवा के नाम पर धर्म परिवर्तन कराती थी।
नरेन्द्र मोदी के शासन में दंगे-फसाद बंद हैं, सबका साथ और सबका विकास का नारा बुलंद है। विकास के क्षेत्र में समानता है। मोदी राज्य के कल्याणकारी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुस्लिम और ईसाई उठा रहे हैं। इस संबंध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान भी चर्चित है। आदित्यनाथ का कहना था कि आबादी के अनुपात से कहीं ज्यादा मोदी की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों ने उठाया है और उठा रहे हैं।
पश्चिमी मीडिया या पश्चिमी देश अपना दुराग्रह त्याग दें, अपनी अफवाही सोच त्याग दें, अपना मुस्लिम और ईसाई समर्थक अवधारणाएं छोड़ दें, सनातन विरोधी अभियान बंद कर दें, जिहादियों की भस्मासुरी समर्थन करना बंद करें। ऐसी सोच का कोई लाभ नहीं है। नरेन्द्र मोदी के रूप में भारत न केवल आत्मनिर्भर बन रहा है बल्कि शक्तिशाली भी बन रहा है। यूरोप और अमेरिका से कभी हथियारों का बंाट जोहने वाला और मदद मांगने वाला भारत आज हथियारों का निर्यात करने लगा है। भारत के टेक्नोक्रेट और प्रशासनिक वीर अगर न हों तो फिर पश्चिमी देशों और अमेरिका का विकास अवरूद्ध हो जायेगा। अब तो शासन चलाने के लिए भी भारतीय और वह भी सनातनी चाहिए। खुद ब्रिटेन का प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय मूल का है और उसकी निष्ठा सनातन संस्कृति में निहीत है, हमारी अर्थव्यवस्था प्रेरक और स्थायी है। इसलिए पश्चिमी मीडिया की भारत विरोधी सोच से हमें क्या नुकसान होगा? खुद पश्चिमी देशों का मीडिया अविश्वसनीयता की शिकार होगा।
आचार्य विष्णु हरि
आचार्य विष्णु हरि